बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचनासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 8
आलोचक एवं आलोचना दृष्टि
1. रामचन्द्र शुक्ल : काव्य में लोकमंगल
प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
हिन्दी आलोचना के मूर्धन्य और मौलिक समीक्षकों में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का अन्यतम स्थान है। आलोचना क्षेत्र को यथार्थतः सक्रिय करते हुए अपनी रसवादी - वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि के कारण वे आज तक अनुकरणीय हैं। 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' तथा तुलसी, सूर और जायसी ग्रन्थावली की विस्तृत भूमिकाओं व काव्यशास्त्रीय निबन्धों में उन्होंने अपनी अप्रतिम समीक्षा सामर्थ्य को रसवाद की भूमिका पर स्थापित किया। पाश्चात्य प्रभाव से अनातंकित रहते हुए उन्होंने पुनः भारतीय काव्य-सौन्दर्यगत मानदण्डों की ओर दृष्टिपात किया तथा उनकी रस, अलंकार आदि की आधुनिकता सापेक्ष मनोवैज्ञानिक दृष्टि से व्याख्या की। उन्होंने रसवाद की मीमांसा भारतीय और पश्चिमी विचारधारा का सम्यक सामंजस्य करते हुए की और अलंकारवाद की रूढिग्रस्तता को दूर कर उसे जीवन सौन्दर्य का पर्याय मान ग्रहण किया।
शुल्क जी की आलोचना दृष्टि मूल्याधारित है। काव्य में उन्हें उच्चतर नैतिक-सांस्कृतिक मूल्यों की अभिव्यक्ति काम्य है। वे काव्य की प्रकृति का विवेचन न कर काव्य के प्रयोजन का विवेचन करते हैं। काव्य को वे समाजसापेक्ष ही मानते हैं और उसे सम्पूर्ण व्यक्त - जगत्, लोक-संग्रह से सम्बन्ध करते हैं। अतः शुक्लजी की आलोचना दृष्टि के तीन अंग माने गये हैं-
(i) रस,
(ii) लोकमंगल की भावना, तथा
(iii) मनोविज्ञान, समाजशास्त्र व इतिहास सापेक्ष उद्भावनाएँ।
शुक्ल जी की साहित्य-विषयक मान्यताओं पर भारतीय रस- सिद्धान्त का स्पष्ट प्रभाव है। वे लिखते हैं- "शब्दशक्ति, रस, रीति और अलंकार अपने यहाँ की ये बातें काव्य की स्पष्ट और स्वच्छ मीमांसा में कितने काम की हैं, मैं समझता हूँ, आवश्यकता इस बात की है कि उत्तरोत्तर नवीन विचार - परम्परा द्वारा इन पद्धतियों की परिष्कृति, उन्नति और समृद्धि होती रहे।" यह कार्य शुक्ल जी के ही हाथों बखूबी हुआ जिसमें उनकी रसवादी दृष्टि का विशिष्ट स्वरूप उद्भासित हुआ। रसवाद को वे मानव मन की उदात्त अवस्था से सम्बद्ध कर देखते हैं।
कविता को परिभाषित करते हुए वे कहते हैं, “जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की मुक्तावस्था रसदशा कहलाती हैं। हृदय की इसी मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द - विधान करती आयी है, उसे कविता कहते हैं।" मुक्तावस्था का अर्थ है व्यक्ति की निजी राग-द्वेष और हानि-लाभ - चिन्तन से ऊपर उठना और समष्टिपरक सामंजस्य करना. तुलसीदासकृत 'रामचरितमानस' को वे इसीलिए शीर्षस्थ रचना मानते हैं क्योंकि इसमें रामरूपी नायक के इसी उदास व्यक्तित्व और कृतित्व का दिग्दर्शन है। 'वे रसानुभूति, साधारणीकरण आदि के साथ प्रत्यक्षानुभूति, लोकहृदय या सामान्य हृदय का मेल देखते चलते हैं। इस मेल के आधार पर ही वे काव्य की कोटियाँ निर्धारित करते हैं।
पूर्वकाल में काव्यशास्त्रान्तर्गत हुए रस के अत्यन्त गम्भीर और दार्शनिक विवेचन को आचार्य शुक्ल ने पहली बार मनोवैज्ञानिक पीठिका पर प्रतिष्ठित किया। उसे जीवन के परिप्रेक्ष्य में प्रत्यक्षानुभूति से जोड़कर देखा, "मेरी समझ में रसास्ववादन का 'प्रकृत स्वरूप' 'आनन्द' शब्द से व्यक्त नहीं होता। 'लोकोत्तर', 'अनिर्वचनीय' आदि विशेषज्ञों से न तो उसके वाचकत्व का परिहार होता है और न प्रयोग का प्रायश्चित | क्या क्रोध, शोक, जुगुप्सा आदि आनंद का रूप धारण करके श्रोता के हृदय में प्रकट होते हैं।?” उनके अनुसार करुण रसास्वादन में दर्शकं वास्तव में दुःख ही का अनुभव करते हैं किन्तु हृदय की मुक्तावस्था होने के कारण वह प्रत्यक्षानुभूति भी रसात्मक होती है। अतः रसानुभूति भी प्रत्यक्ष या वास्तविक अनुभूति से भिन्न कोई अंतर्वृद्धि नहीं बल्कि उसी का एक 'उदात्त' और 'अवदात' रूप है। शुक्लजी ने जहाँ कहीं भी रसानुभूति का काव्य के सन्दर्भ में विश्लेषण किया है उसे पात्रादिगत प्रत्यक्षानुभूति से मिलाया भी है।
साधारणीकरण विषयक उनका मत भी पूर्वधारणा से भिन्न है। वे 'आलम्बनत्व धर्म के साधारणीकरण' द्वारा यह प्रतिपादित करते हैं कि शीलवान दर्शक कवि के उस अव्यक्त भाव के साथ तादात्म्य करता है जिसके अनुरूप उस पात्र का स्वरूप संघटित किया जाता है- "किसी काव्य में वर्णित आलंबन केवल भाव की व्यंजना करने वाले मात्र आश्रय का ही न रखकर प्रत्येक पाठक या श्रोता का आलंबन हो जाए और वह निर्विशेष, शुद्ध या मुक्तहृदय से उनका अनुभव कर सके।" उदाहरण- पाठक या दर्शक का तादात्म्य राम के ही साथ होता है, रावण के साथ नहीं।
इस प्रकार शुक्ल जी की यह रसवादी दृष्टि ही उनके आलोचना कर्म की धुरी रही जिस पर अवस्थित रहते हुए उन्होनें साहित्य और उसके तत्वों को सदैव मानव अस्तित्व की सापेक्षता में ही विवेचित किया।
रामचंद्र शुक्ल : लोकमंगल की अवधारणा
रसदृष्टि का ही दूसरा पक्ष है - लोकमंगल या लोकसंग्रह की भावना। आधुनिक संदर्भों में इसे सामाजिक सरोकार के रूप में भी समझा जा सकता है। शुक्लजी ने महाकवि तुलसीदास जी की आलोचना के प्रसंग में पहली बार इस शब्द का प्रयोग किया। शुक्ल जी साहित्य को पूर्णतः जीवन-जगत् सापेक्ष मानते हैं। 'कविता क्या है' निबंध में वे लिखते हैं- "इन अनेक भावों का व्यायाम और परिष्कार तभी समझा जा सकता है जबकि इन सब का प्राकृत सामंजस्य जगत् के भिन्न-भिन्न रूपों, व्यापारों तथा तथ्यों के साथ हो जाए।” कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों की क्षुद्रता से निकालकर लोक से तादात्म्य करना सिखाती है। उदात्त भावभूमि पर एक की अनुभूति सबकी अनुभूति होती है।
'लोक के साथ तादात्म्य, आत्मसत्ता का लोकसत्ता में विलीनीकरण, लोक संग्रह, लोकमंगल ही वह केन्द्र बिन्दु हैं जिसके चारों ओर उनकी आलोचना घूमती है। लोक के साथ प्रतिबद्धता के कारण वे रस की नयी व्याख्या करते हैं और इसके विरूद्ध पड़ने वाले समस्त कलावादी आन्दोलनों को अस्वीकार कर देते हैं।' यहाँ तक कि सूर और जायसी की अपेक्षा तुलसी की श्रेष्ठता का एक कारण लोकपक्ष की अवलेहना ही है। तुलसी ने राम के शील- शक्ति और सौन्दर्यात्मक रूप का अनुशीलन किया है जो लोकधर्म को सर्वोपरि मानता है। शुक्ल जी सच्चे नायक से यही अपेक्षा रखते हैं।
शुक्ल जी का निबन्ध इस विषय पर उनका निबंध 'काव्य में लोक-मंगल की साधनावस्था' उनकी मूल भावना पर विस्तृत प्रकाश डालता है। वे काव्य-प्रदत्त आनंन्द की अभिव्यक्ति दो अवस्थाओं द्वारा मानते हैं - साधनावस्था और सिद्धावस्था। साधनावस्था प्रयत्नावस्था है जिसमें पीड़ा, बाधा, अन्याय, अत्याचार आदि के निराकरण और अधर्म पर धर्मवृत्ति की विजयार्थ प्रयास किये जाते हैं। 'सिद्धावस्था आनंद के उपभोग की अवस्था है। शुक्ल जी उपभोग से अधिक महत्त्व प्रयत्नावस्था का मानते हैं जो कर्मशक्ति के सौन्दर्य से युक्त हो अधिक स्पृहणीय बन जाती है। धर्मसाधना, लोकमंगल में भी तत्परता की वृत्ति को वे अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं - 'गति में सुन्दरता रहती ही है, आगे चलकर चाहे यह सफल हो चाहे तिला विफलता में भी एक निराला ही विषण्ण सौन्दर्य होता है।" राम द्वारा रावण को मारना ही महत्त्वपूर्ण नहीं अपितु उस तक पहुँचने के लिए किया जाने वाला तमाम कार्य व्यापार सुन्दर जो लोक में कर्म के प्रति आस्था जागृत करता है।
जो साहित्य जितने अधिक जीवन सन्दर्भों का साक्षात् कराता है वह उतनी ही उच्च कोटि में गणनीय है। 'रामचरितमानस' ऐसी ही असंख्य लोक - सापेक्ष सौन्दर्य छवियों का सागर है। शुक्ल जी 'मानस' में वर्णित प्रेम को भी गत्यात्मकता के आधार पर सूर और जायसी द्वारा वर्णित प्रेम-भावना से श्रेष्ठ मानत हैं, क्योंकि उसमें मनुष्यमात्र के प्रति यह भाव प्रसारित हुआ है। सूर के प्रेम को वे लोक बाह्य मानते हैं और 'पद्मावत' की नागमती भी जहाँ अपना राजसी व्यक्तित्व त्याग, साधारण नारी के स्तर पर उतर आती है, वहीं प्रशंसनीय होती है। इसी आधार पर उन्होंने रीतिकालीन शृंगारिक कविता और छायावादी कविता को नितांत निजी अभिव्यक्तियों से निःसृत होने के कारण अस्वीकार कर दिया है।
निष्कर्ष - कहा जा सकता है कि कला का अस्तित्व शुक्लजी की दृष्टि में विशुद्ध लोक सापेक्ष होना चाहिए जो सामान्यजन को प्रेरित उद्वेलित कर सके एक ओर अपनी न्यूनताओं से निकलने के लिए तो दूसरी ओर शक्तियों के संवर्द्धनार्थ। 'कला - कला के लिए उनके मतानुसार बेलबूटा और नक्काशी हैं जिनका अस्तित्व कोई व्यावहारिक उपयोगिता नहीं रखता।
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- प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
- प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
- प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
- प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
- प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
- प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
- प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
- प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
- प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
- प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
- प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
- प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
- प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
- प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
- प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
- प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
- प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
- प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
- प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
- प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
- प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
- प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
- प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
- प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
- प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
- प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
- प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
- प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
- प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
- प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
- प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
- प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
- प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
- प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
- प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
- प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?